नव-दुर्गा (Nav-Durga)

शक्ति की अभिव्यक्ति, देवी माँ के नौ रूपों से दर्शायी जाती है।

नव-दुर्गा (Nav-Durga)

जीवन की उत्पत्ति शिव-शक्ति अथवा पुरुष-प्रकृति के सम्मिलन से है। इन दोनों के सामजस्य पर वैश्विक समाज का संतुलन निर्भर करता है। पुरुष- प्रकृति, गृहस्थी की धुरी हैं और गृहस्थी समाज की प्रथम इकाई। शिव, पुरुष व्यव्हार और आचरण के उच्चतम मापदंड हैं तो शक्ति, स्त्री के आचरण, व्यव्हार की। शक्ति के नव-रूप का अर्थ है, अपने जीवन-काल में स्त्री प्रायः जो नौ रूप में विचरण करती है और सभी रूपों में वो सम्मानीय और पूजनीय रहे तो स्वस्थ गृह और स्वस्थ समाज की आदि देवी रहती है।

माँ का प्रथम रूप है शैलपुत्री। अपने इस सवरूप में माँ एक हाथ में पुष्प लिए हुए हैं और दूसरे हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए है। वो वृषभ पर सवार है। वो पर्वत पुत्री हैं  इसीलिए उनका नाम पार्वती और हेमवती भी है। स्त्री जीवन का प्रथम चरण है, पुत्री रूप। माँ का यह रूप सिखाता है कि एक पुत्री का पालन-पोषण कैसे हो। वो स्त्रीयोचित गुणों के साथ-साथ बलशाली और युद्ध-कौशल में भी प्रवीण हो -कमल और त्रिशूल इसी संतुलन को दर्शाते हैं। वो निर्णय में, प्रतिकूल परस्थिति  में  पर्वत की तरह अडिग रहे। वो परिश्रम और उद्धम  (वृषभ) पर चले। जिस परिवार में इस रूप का सम्मान हो वहाँ क्षुधा नहीं रह सकती। 

माँ का द्वितीय रूप है ब्रह्मचारिणी। इस सवरूप में माँ लाल गुलाब का फूल पकड़े हुए हैं और एक हाथ में कमण्डल है। वो रुद्राक्ष की माला का जाप करती हैं और शिव को वर रूप में पाने के लिए घोर तपस्या करती हैं। यह स्त्री का युवती रूप है जब वो परिणय-समर्पण के लिए तत्पर है। लाल गुलाब इसी का सूचक है। कमण्डल मर्यादित गरिमा बनाए रखने का संकेत है। स्वेच्छा को हिन्दू धर्म में सदैव महत्व दिया गया , वो चाहे वर चुनने के लिए हो या सहचार्य के लिए। स्त्री की इच्छा की अवहेलना किसी भी समाज के लिए अनिष्टकारी है ,ऐसे समाज में युद्ध होते रहते हैं। जहाँ स्त्री की इच्छा का सम्मान होता है वहाँ ज्ञान प्रवाहित होता है। ज्ञान अथवा रक्त प्रवाह दोनों स्त्री के इस रूप के मान-अपमान पर निर्भर करते हैं।

माँ का तृतीया रूप है चंद्रघंटा। माँ का यह रूप स्वर्णिम आभा से दमकता है। ललाट पर घंटे की आकृति वाला अर्ध-चंद्र तिलक सुशोभित है।माँ के दस हाथ हैं। इस रूप में माँ सिंह सवार हैं। यह स्त्री का नव-विवाहिता रूप है। नए परिवेश में ढलते हुए शारीरिक परिवर्तन से संघर्ष करती हुई, चिढ़चिढ़ी, विषाद ग्रस्त अथवा क्रोध पर सवार हो सकती है। लेकिन परिवार का सम्मान और प्रेम उसे घंटे की तरह उसके सहज स्वभाव में रहने के लिए चेताता रहता है और उसके परिवार का ध्यान उसके मस्तिष्क पर चंद्र की तरह शीतलता बनाए रखता है।वो नए परिवार के संयम और सहयोग से दस हाथों के साथ गृहस्थी संभालती है। जो परिवार एक-दूसरे के असहज व्यवहार में भी सम्मान और प्रेम की भावना को खोने नहीं देता, उस परिवार में चिरायु, निरोगता और धन-सम्पदा बरसती है।

माँ का चतुर्थ रूप है कुष्मांडा। अपने इस रूप में माँ के अधरों पर मंद हँसी है। उनके अष्ट-भुजा हैं जिन में अस्त्र-शस्त्र के साथ जप-माला भी है। इस रूप में वो ब्रह्माण्ड-जननी हैं। यह एक प्रफुल्लित पत्नी और कुशल गृहणी का रूप है। गृहणी में इतनी ऊर्जा है वो कई कार्य एक साथ कर सकती है। प्रेम से पूजित, सम्मानीय, स्वस्थ,प्रसन्न-चित  स्त्री बलवान से बलवान, ज्ञानी से ज्ञानी की जन्मदायिनी है। ईश्वर को भी अवतार लेने के लिए माँ के गर्भ से ही आना होगा इसी लिए उसके अण्ड में सूर्य समा लेने की शक्ति है। गर्भवती स्त्री सृष्टि की सृजन-कर्ता है उसका सम्मान सर्व-सिद्धिदायक है, वो स्वस्थ शिशु को जन्म दे परिवार को उन्नति देती है, और समाज को आगे बढ़ाती है।

माँ का पाँचवाँ रूप है स्कन्द माता। इस रूप में माँ पद्मासन में विराजमान हैं और गोद में बाल स्कन्द हैं। इस रूप में माँ की चार भुजा हैं और वो सिँह पर सवार हैं। यह स्त्री का मातृत्व रूप है। उसके दुग्धपान से  शिशु में आरोग्य, विद्या ,बल , सदाचार ,धर्म और प्रेम का संचार होता  है। वो अपने शिशु को चारों दिशाओं से घेर कर सिँह की तरह चौकन्नी रहती है। इस रूप का प्रसन्न, सम्मानित और स्वस्थ रहना अति आवशयक है।

माँ का छठा रूप है कात्यानी। माँ का यह रूप अपने पिता महाऋषि कात्यान से जाना जाता है। इसी रूप में माँ ने महिषासुर मर्दन किया। माँ के इस रूप को मन की शक्ति के लिए जाना जाता है। हिन्दू शास्त्रों में पुत्री के पिता के नाम अथवा  राज्य  से अपना परिचय रखने के प्रावधान है, जैसे कौशल्या, कैकेयी, जानकी। एक स्त्री दो पृथक परिवारों के गठजोड़ का कारण बनती है। वो व्यक्तिगत, पैतृक और ससुराल तीनों के ही मूल्यों का समायोजन होती है और इसी का वो अगली पीढ़ियों में संचार करती है। जब कोई पर-स्त्री पर कुदृष्टि डाल उसकी गृहस्थी में सेंध लगाने का प्रयास करता है तो उसके पालन-पोषण के मूल्य उसे उस स्थिति से पार पाने  के लिए पूर्णतया सक्षम बनाते हैं।

माँ का सातवाँ रूप है कालरात्रि। माँ का यह रूप अंधकार की भांति भयावह है। उनके तीन नेत्र हैं, चार भुजाएं हैं और वो गर्दभ पर सवार हैं। माँ ने इस रूप में मधु-कैटभ का संहार किया। यह स्त्री का परिवार और स्वाभिमान  की रक्षक का रूप है। एक माँ, एक पत्नी अपने परिवार पर आने वाले संकट के लिए काल होती है। उसके क्रोध से बचना चाहिए। और समस्त परिवार को उसका सम्मान करना चाहिए, उसके स्वाभिमान को ठेस परिवार के लिए भी घातक हो सकती है। परिवार का प्रेम उसे अविवेक पर सवार होने से बचा सकता है।

माँ का आठवाँ रूप है महागौरी। माँ इस रूप में श्वेतवर्णा हैं वो गाय पर आरूढ़ हैं। यह एक संतुष्ट स्त्री का रूप है। शांत चित, सबका भरण-पोषण करते हुए ,पारिवारिक आनंद उठाते हुए, प्रतिष्ठित और गरिमामयी स्त्री। इस सवरूप में माँ की अवस्था आठ वर्ष बताई जाती है जिसका अर्थ यह भी हो सकता है कि आठ पढ़ाव पक चुकी स्त्री हैं। कन्या-भोज से परिवार में आने वाली कन्या के हर रूप का आदर करना सिखाती है।

माँ का नौंवा रूप है सिद्धिदात्री। यह रूप समस्त सिद्धियां देने वाला है। इस रूप की आराधना कर शिव अर्ध-नारीश्वर बने और उन्होंने अणिमा , महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व और  वशित्व आठ सिद्धियाँ प्राप्त की। यह स्त्री और पुरुष के सम्पूर्ण समर्पण का रूप है। जहाँ स्त्री का हर रूप में सम्मान हो, उस परिवार में सब सिद्धियाँ वास करती हैं और ज्ञान, धन-सम्पदा बरसती है। 

स्त्री मानव-उत्पत्ति का एक मात्र मार्ग है और वो ही अपने दुग्ध से जीवन संचार करती है। नव-दुर्गा का हर रूप मानव जीवन के हर चरण पर स्त्री के महत्व को चेताता है। हिन्दू धर्म में आदि काल से महाऋषियों ने इस रहस्य को पहचान लिया इसीलिए दुर्गा-महिमा की धरोहर हमारी सभ्यता को प्रदान की।

About Author: Anju Juneja

Anju Juneja is a homemaker, who loves to write about topics related to Hinduism in a simple language that is understood by all. This is one way in which she fulfills her Dharmic responsibilities towards the society.

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